प्यारा सा बेटा
नन्हा सा प्यारा सा बेटा हूँ मैं अपनी माँ बाप का
करता हूँ दोनों से प्यार और सत्कार इन का
ना जाने कोई भी हमारा घर कहाँ है
और ना जाने के खाना, बनाना कहाँ है
पता है तो बस के जाना है माँ के साथ
वहा पर तसला बजरी वाला उठाना है
जो पूरा दिन पापा के साथ सारा काम करवाएगी
फिर थोड़ी थोड़ी लकड़ियाँ इकठी करके लाएगी
घर आने के बाद चूल्हा चोंका भी खुद ही जलाएगी
चाहे कितनी भी थकावट हो किसी को ना बताएगी
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रहते है हम हमेशा झोंपड़ियों में महलों की तरह
क्या हुआ अगर उसमे महंगे कपडे ,बर्तन
गाडी , पार्क और बिस्तर नहीं है
फट्टे हुए चद्दर में ही आराम से नींद आती है
रहने की जगह तो हमेशा अलग ही होती है
सड़क , रेलवे या खड्ड के किनारों में ही होती है
वहां तो कोई नहीं रोकता ना कोई टोकता है
बस अपनी जिंदगी ऐसे ही मेहनत करके
और आँखों में छोटे छोटे सपने लेकर
जो ना मिले उसको लकड़ियों और मिट्टी
से बना कर उसी के साथ खेल लेता हूँ
पर जो सबके साथ रहना खेलना ,
वो साइकिल वाली टायर के साथ
छोटी सी बात पर खुश हो जाना
पापा या माँ दोनों में से कोई बी
एक टॉफ़ी भी प्यार से दे दें तो
मानो सारे जहां का प्यार मिल जाता है
चाहें कितनी भी मुश्किल आए
सुख के बाद दुःख और खुशियाँ
क्या फ़र्क पड़ता है गरीब या अमीर होने का
जिंदगी का सफ़र तो सबका ही ख़त्म होगा”
Lovely feelings
Altimate lines
bahut achi kavita hai