तू कहता है दास (Daas)खुद को
दास होने का फर्ज निभाता है ,,
तू हमको हर दुःख, दर्द, बला से बचाता है ,,,,,,
तेरी रहमतों की कमी नहीं कोई ,,,
तू तो हर दम साथ निभाता है ,,,,,,
तू कहता है दास खुद को ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेरी इक अरदास पर दोडा चला आता है ,
कमी तो मुझ मैं है जो,तेरे बचनो पर न चल पाता हूँ ,
मैं का कर अहंकार बार बार तुम से दूर हो जाता हूँ ,
तू कहता है दास खुद को दास होने का फर्ज निभाता है ,
तेरे चरणों में बीते हर स्वास मेरा
तेरा ही हर पल ध्यान हो
बना दे मुझे भक्ति की चमकती तलवार
और तू ही मेरा म्यान हो
हो जून निर्मल भटकती में ऐसे
जैसे झरना बहता जाता है
तू कहता है दास खुद को ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बहती में बन जाऊं पताशा
मन में ना हो तुझ बिन कोई भी आशा
मान तो हो जाए मेरा ढेर
सिमरन से हो मेरी सवेर
कर रहमत तेरा दास बन पाऊं
मैं मेरी को मन से केवल तू ही मिटाता है
तू कहता है दास (Daas) खुद को
दास होने का फर्ज निभाता है
तेरे दिखाए रास्ते पर चल पाऊं
भक्ति और प्रेम दाता मैं निश्छल पाऊं
प्रेम डगर पर कदम बढाऊं
भक्ति में मैं, मैं को मिटाऊं
देदे दान मुझे भी तू तो सारे जग का दाता है
तू कहता है दास (Daas)खुद को
दास होने का फर्ज निभाता है
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