इंसानों में पाया है
इंसानों में पाया है
हर पत्ते में है सूरत तेरी
हर जर्रे में साया है
पत्थरों में था ढूँढता तुझको
इंसानों में पाया है
अब तक था यूँ ही अंधेरों में भटकता
तेरे दीदार के लिया था हर कहीं सर को पटकता
जलाकर दीप ज्ञान का अज्ञानता के अंधेरों में
रास्ता सच का तूने दिखाया है
पत्थरों में था ढूँढता तुझको ……. …….. …….. …….
ना पहचान थी ना पता था तेरा
बस तुझको पाने का इरादा पक्का था मेरा
कभी राके व्रत तो कभी नदियों में नहाकर
इस तन को खूब गलाया है
पत्थरों में था ढूँढता तुझको ……. …….. …….. …….
किसी ने दिया तावीज़ तो किसी ने मन्त्र दे डाला
किसी ने बताई पूजा अर्चना तो किसी ने तंत्र दे डाला
यूँ ही इन धरम के ठेकेदारों ने
मुझे पग पग पर भरमाया है
पत्थरों में था ढूँढता तुझको ……. …….. …….. …….
किसी ने कहा बलि देकर पा ले खुदा को
तो किसी ने कहा जंगल में जा के ध्या ले खुदा को
पर इन सब से न्यारा है जो दिया तूने
इक तेरा इशारा ही इस मन को भाया है
पत्थरों में था ढूँढता तुझको ……. …….. …….. …….
लोगों ने पूछा किसकी करता है बात तू
क्या है और कौन है खुदा जिसका तेरे सर पर साया है
मैंने कहा चल इस दर पे तेरे मन में गर ये ख्याल आया है
खुदा तो वो ताकत है जिसने तेरी साँसों तक को चलाया है
पत्थरों में था ढूँढता इसको ……. …….. …….. …….
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