होली (Holi)

होली (Holi) वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय  त्यौहार है। यह त्यौहार भारतवर्ष के साथ साथ नेपाल में भी बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है । यह त्यौहार रंगों तथा हंसी खुशी का त्यौहार है जो आज लगभग पूरे विशव में मनाया जाने लगा है ।

यह भारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और सुप्रसिद्ध त्यौहार है।
ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कड़वाहटों को भूल कर गले मिलते हैं।
होली का त्यौहार वैसे तो वसंत पंचमी से ही शुरू हो जाता है। वसंत पंचमी वाले दिन ही पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है।
इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है।

 

होली (Holi) का त्यौहार कब मनाया जाता है ?

यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह तिथि अधिकतर मार्च माह में ही आती है | इस समय भारत में ना तो अधिक गर्मी होती है और ना ही । यही कारण  है कि  इस माह को वसंत माह भी कहा जाता है | यह त्यौहार Normally दो दिनों में मनाया जाता है |

 

होली किस प्रकार मनाई जाती है ?

इस पर्व को दो दिनों तक मनाया जाता है |
पहला दिन होलिका दहन के नाम से भी जाना जाता है।
होलिका दहन  वाले दिन शाम को बड़ी मात्रा में होलिका दहन किया जाता है और लोग अग्नि की पूजा करते हैं।
अग्नि पूजा में होलिका दहन वाली अग्नि की परिक्रमा भी की जाती है|
होली की परिक्रमा शुभ मानी जाती है।
इस पर्व से काफ़ी दिन पहले से ही इसकी तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं।
अग्नि के लिए एकत्र सामग्री में लकड़ियाँ और उपले प्रमुख रूप से होते हैं।

किसी सार्वजनिक स्थल या घर के आँगन में उपले व लकड़ी से होली तैयार की जाती है।
उपलों और लकड़ियों  से बनाई गयी इस होली का  पूजन सुबह से ही  शुरू  हो जाता है।
दिन ढलने पर मुहूर्त के अनुसार होली का दहन किया जाता है।
यहाँ से आग लेजाकर ही आग ले जाकर घरों के आंगन में रखी निजी पारिवारिक होली में आग लगाई जाती है।

इस आग में गेहूँ, जौ की बालियों और चने के होले को भी भूना जाता है। घरों में बने पकवानों से भोग लगाया जाता है।
होली के दिन घरों में खीर, पूरी और पकवान बनाए जाते हैं।
दूसरे दिन सुबह से ही लोग एक दूसरे पर रंग, डालना शुरू कर देते हैं | ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं
और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है।कई परिवार तो प्रीति भोज तथा गाने-बजाने के कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं।
होली (Holi) के अवसर पर सबसे अधिक खुश बच्चे होते हैं वह रंग-बिरंगी पिचकारी को भरकर ,
सब पर रंग डालते भागते दौड़ते हेउ मजे लेते हैं । पूरे मोहल्ले में भागते फिरते हुए  इनकी आवाज  में “बुरा ना मानो होली है”  सुनने को मिलता है ।

 

होली की मान्यता और कथा

इस पर्व {होली (Holi)} को भी बुराई पर अच्छाई की जीत के नाम से ही जाना जाता है|  इस पर्व से जुड़ी कई कथाएं सुनने को मिलती हैं |
उस सब कथाओं में से भक्त प्रहलाद की कथा सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय है|
यह कथा आपने भी सुनी होगी | इस कथा के अनुसार :-

पुरातन समय में हिरण्यकश्यप नाम का दानव था | उसे अपने साम्राज्य और बाहुबल  पर बहुत घमंड था |
उसे यह वरदान प्राप्त था कि उसकी  मृत्यु ना तो दिन में हो और ना रात में, ना धरती पर ना आकाश में,
ना जल से ना अग्नि से, ना अस्त्र से ना शस्त्र से, ना इंसान से ना जानवर से | जो उसके अनुरूप उसको अमर बनता था |

उसका घमंड यहाँ तक बढ़ गया था की उसने खुद को ईश्वर घोषित कर दिया|
उसने अपने राज्य में ईश्वर भक्ति पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया था |
यदि कोई ऋषि मुनि ऐसा करने की चेष्ठा भी करता था तो उसे  मृत्यु दंड दिया जाता था |

भक्त का जन्म

फिर हिरण्यकश्यप के यहाँ एक पुत्र ने जन्म लिया | उसका नाम प्रहलाद रखा गया| प्रल्हाद ईश्वर की भक्त निकला |
उसे ना तो अपने पिता से भय था और ना ही मृत्यु दंड से | प्रहलाद हमेशा भगवान् विष्णु की उपासना करता था|
वो हमेशा हरी नाम का सिमरन किया करता था |
हिरण्यकश्यप ने उसको मारने के अथक प्रयास किये लेकिन हर बार असफलता प्राप्त हुई |
तब हिरण्यकश्यप की बहन होलिका आती है |होलिका को बरदान सवरूप में एक ओढ़नी मिली थी|
जिससे उसको ओढ़कर होलिका अगर आग में भी चली जाती थी तो आग उसको
जला नहीं सकती थी|

एक दिन हिरण्यकश्यप ने होलिका के कहने पर प्रहलाद को जलाने के लिए एक षड्यंत्र रचा|
इस षड्यंत्र के अनुसार होलिका प्रहलाद को गोद  में लेकर  लकड़ियों के ढेर पर बैठ जाती है |
उस ढेर को आग के हवाले  कर दिया जाता है| इस समय उस ओधनी का पल्लू प्रहलाद  से सर पर आ जाता है |
जिससे  होलिका आग में जल जाती है और प्रहलाद बच जाता है|
तभी से  होलिका दहन के रूप में इस पर्व को मनाया जाने लगा |

 

होली (Holi) पर आधुनिकता का रंग और बुराइयां :

यह एक  रंगों का त्योहार है, हँसी-खुशी का त्योहार है, लेकिन होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते हैं।
होली की लोकप्रियता का विकसित होता हुआ अंतर्राष्ट्रीय रूप भी आकार लेने लगा है।
प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन बढ़ गया है |
भांग-ठंडाई की जगह नशेबाजी और लोक संगीत की जगह फ़िल्मी गानों का प्रचलन इसके कुछ आधुनिक रूप हैं।

प्राचीन काल में लोग चन्दन और गुलाल से ही होली खेलते थे।
लेकिन आज गुलाल, प्राकृतिक रंगों के साथ साथ रासायनिक रंगों का प्रचलन बढ़ गया हैl
ये रंग स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक हैं|
ये रंग  त्वचा के साथ साथ आँखों पर भी बुरा असर करते हैं।
जगह जगह शराब के नशे में लोग मित्रों से मिलने के लिए निकलते हैं
और दुर्घटनाओ का शिकार हो जाते हैं ।

 

अंत में:-

अंत में मेरा आप सभी से बस यही कहना है कि त्यौहार को मनाईये लेकिन सुरक्षित तरीके से|
नशों से खुद को बचाएं| रासायनिक रंगों का उपयोग हो सके तो ना करें| प्राकृतिक रंगों का उपयोग ही करें|
जिससे बच्चे, बड़े  और बूढ़े सभी आन्दित और सुरक्षित रहें|
त्यौहार आपसी मतभेदों को भुलाने के लिए मनाये जाते हैं |
तो इस दिन भी हमारे मतभेद समाप्त होने चाहिए ना कि और जयादा बढ़ जाएँ |

आप सभी को इस वर्ष होली के पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ |

 

धन्यवाद

यह भी पढ़ें:-

  1. Best Wishes on Holi-2022 | होली-2022 पर शुभकामनाएं
  2. Friendship Day 2021 | maitri diwas 2021 ( मैत्री दिवस )
  3. Best devotional Wishes on Holi-2022 | होली-2022 पर भक्तिमय शुभकामनाएं
  4. Best Wishes
  5. कहना या सहना
  6. हिंदी कवितायेँ 
  7. मैं घर और ऑफिस
  8. लड़की
  9. इंसान की ज़िन्दगी के दिन

Related Posts

R.K.Jaswal

Hello! I am R.K.Jaswal, belongs to Una Distt. Part of beautiful Himachal Pradesh state of the great India. I like to read poetry, Shayari, moral stories, and listening to music. I also like to write such things i.e. Moral Stories, Shayari, and poetry in different categories. I confess that I am not a professional writer. I am just trying to give the words to my thoughts at Man Ke Par website. because I am a learner, not a professional writer, so there is much possibility for errors. So all of you are requested to kindly aware me about my mistakes by commenting on my posts. I am always available to improve my skills and minimize mistakes. Regards R.K.Jaswal

This Post Has One Comment

Comments are closed.