इन्सान की फितरत भी कितनी अजीब है,सब सुख हैं मगर फिर भी गरीब है
insan ki fitrat भी कितनी अजीब है, जिंदगी खड़ी मौत के कितने करीब है
खुद दुखी दूसरे को सताने का नित नया बहाना बनता है
अपनों की तो कद्र नहीं और नित नया ज्ञान अपनाता है
अपनी खता का दोष दुसरे पर लगाता है
फिर कदम कदम पर ठोकर खाता है
इन्सान खुद के दुखों से कम , दूसरों के सुखों से परेशान है
देख हस्ता खेलता दूसरे को होता खुद यह परेशान है
खोजना है तो अपनी कमियाँ खोजो, दूसरा तो हमेशा महान है
देख कर चलो जमीन की तरफ, आसमान में देखने वाला तो हमेशा ही परेशान है
इन्सान से अच्छे तो जानवर हैं जो प्यार का सन्देश सिखला जाते हैं
करो तुलना इनके व्यबहार से खुद की, तो आईना हमें दिखला जाते हैं
हम मानते हैं खुद को महान क्यूंकि बुद्धि के बलवान हैं
इतिहास गवाह है अंत हुआ है सबका, चाहे कितने भी महान हैं
जो समझता था खुद को विश्ब विजेता, समय से तो बो भी नही जीत सका है
है बुरी चीज़ मगरूरियत जहाँ में, जिसे ना कोई बंधू और न कोई सखा है
समय समय की बात है कभी दिन तो कभी रात है
मौत है मंजिल सबकी फिर इस इंसानी पुतले की राख़ है
मौत है सच्चाई जीवन की, जिंदगी तो अमानत पराई है
जो किसी के हिस्से थोड़ी , किसी के हिस्से ज्यादा आई है
मौत को झुठलाया नही जा सकता ,इसे भुलाया नहीं जा सकता
यह तो जिन्दगी की सच्चाई है , जीवन से मिटाया नहीं जा सकता
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