इस कविता (मैंने लाईफ़ में ज़माना देखा है) में कवि ने अपने आँखों देखे ज़माने
के हालात और मन के भावों को कलम का सहारा लेते हुए व्यक्त करने की कोशिश की है|
कवि के मन के भाव निम्न प्रकार के हैं
मैंने लाईफ़ में ज़माना देखा है ,
हर इक दिन बनता तराना देखा है ,
शमा के लियें जलता परवाना देखा है ,
चाँद के लिए चकोर दीवाना देखा है ,
मैंने…. …. …. …. ….
मजहब के नाम से लड़ता इंसान देखा है ,
जाती के नाम से बंटता समाज देखा है ,
पैसे के लिए बिकता ईमान देखा है ,
कोई नहीं पूछता उसको देश के लिए मरता जवान देखा है
मैंने…. …. …. …. ….
हर युग मैं आता है इक मसीहा इंसानी जामा लेकर
पर फिर भी नें जान पाया इसको इंसान देखा है
इंसान का डगमगाता इमान देखा है ,
मैंने…. …. …. …. ….
जो भी चला है इस रूहानियत की राह पर ,
भला बुरा कहा है लोगों ने ,पत्थर मारे हैं लोगों ने उसको ,
पर उनके जाने के बाद ,पूजते हुए उनके पग चिन्हों को
और फोटो को उनकी सलाम करता हुआ जमाना देखा हैं
मैंने…. …. …. …. ….
किसी को घमंड है पैसे का तो कोई रुतबे में ऊँचा,
किसी की जाती बड़ी है,तो कोई धर्म का सुच्चा,
कोई रंग का गोरा ,तो कोई काला,मिलता मेल नहीं ,
ये तो है सब भगबान की माया ,समझ सका कोई इसका कोई खेल नहीं
पैसे की पीछे मरता मैंने ज़माना देखा है
मैंने…. …. …. …. ….
कितना खुदगर्ज है यह इंसान इसको शौक दिखावे का
रोटी,कपड़े और प्यास से बिलखते बच्चपन का फ़साना देखा है ,
नफरत करता दूसरों के पहरावे से ऐसा देश का दर्पण देखा है
जो मैं करूँ वो सही इस सोच में बैठा ज़माना देखा है
मैंने…. …. …. …. ….